आँखे जो बंद करू तो, क्यों सुनाई दे गूंज सागर की
आँखे खोलू तो दिखे सामने, चांदनी खिलती चाँद डाल कीइक कश्ती सी उस सागर में, उभरी जैसे है मन में क्यूँ
रात सावरी आंखें भरकर, काजल जैसी अंधियारी क्यूँ
प्यास ना बुझती जिस पानी से, मन में भरा हुआ वो सागर
आंखें देखे चाँद की शबनम, चांदनी सजती जिस अम्बर पर
मन में बैचेनी भर के तू, क्यों जीता है दिल ये बता दे
क्यों करता तू इतनी भगदड़, और क्यों इतने रंग पसारे
ज़िन्दगी बस यही बात है, इसमें बसता अग्नि का घर
मन क्यूँ देखे उस पानी को, जो न बुझाए अंगारे पर
मन की शांति ढूंढे तू जब, खामोश काली रातों जैसी
सागर को तू सुला दे मन के, मिलेगी तुझ को नज़्म प्यार की
शांति मिलती है जो मन को, आंखें देखे खिलती सुबह
पंछी चहके फिर मन में और, आंखें देखे कोई सपना
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